ये कहानी है एक भारतीय नारी की, उसके हक की, उसके अधिकारों के रक्षा की। इस कहानी का उद्देश्य है इस देश की नारीयों पर होते हुए अत्याचारो को कैसे रोकना, कैसे सुलझाना। कहानी की शुरुआत होती है, एक रईस सज्जन इन्सान सेठ घनश्यामदास, और उनकी घमंडी पत्नी शान्ती देवी और बेटे प्रकाश को लेकर और साथ में ये कहानी शुरु होती है उस गरीब लड़की सीता से जो इस घर में बहु बन कर आती है। इस घर में एक किरदार और है। जिनका नाम है अमर, जो घनश्यामदास जी का प्यारा भतीजा है, बात ये है कि पहले ही दिन नई नवेली दुल्हन जिसके हाथों की मेहंदी भी नहीं छूटी है, उसके साथ बुरा सलूक करना शुरु कर दिया जाता है। अमर से ये बात भी छुपी नहीं रही कि सीता पर किए जा रहे जुल्मों सितम के पीछे राकेश, शांती, प्रकाश का भी हाथ है। अमर उन जुल्मों से सीता को बचाने के लिए सीता की ढाल बनता है।
सीता का इस घर में आना शांतीदेवी और शोभा से सहा नहीं जाता, दोनों मिलकर सीता के रास्ते में रोडे अटकाते रहते हैं, घर में सीता पर होते हुए अत्याचारों को देखकर अमर सीता को नसीहत देता है कि अगर वो इसी तरह पुपचाप जुल्म सितम सहती रहेगी तो ये लोग उसका सांस लेना मुश्किल कर देंगे। उनसे सामना करना होगा। इधर राकेश के भड़काने पर शांतीदेवी और शोभा सीता पर चोरी जैसे इल्ज़ाम और दूसरे जुल्म बढ़ाने लगते हैं। घनश्यामदास सीता को इन अत्याचारों से बचाने के लिए बेशक प्रयास करते करते अंत तो गत्वा अपनी जान खो बैठते हैं। घनश्यामदास जिन्हें आगे होने वाली घटनाओं का जैसे आभास था, अपनी वसियत का आधा हिस्सा अमर के नाम और आधा हिस्सा सीता के नाम कर जाते हैं। ये जानकर राकेश, प्रकाश और शांतीदेवी के पांव तले जमीन खिसक जाती है, अमर भी समझ जाता है कि इस घर में महाभारत होने वाली है, और सीता भाभी पर जुल्म बढ़ने की संभावना है, और उसकी सुरक्षा की सारी जिम्मेदारी उस पर है।
शांतीदेवी और राकेश ये महसूस करते हैं कि दोनों को एक दूसरे से अलग करना बहुत ज़रूरी है। ये सब मिलकर अमर और सीता पर इल्ज़ाम लगाते है कि उन दोनो के बीच नाजायज संबंध है, दिमाग का अन्धा सीता का पति प्रकाश, राकेश और शांतीदेवी की बातों में आकर उसे घर से निकल जाने के लिए कहता है, लेकिन अमर सीता की खातिर घर छोड़कर चला जाताहै। दुखी सीता शांतीदेवी से कहती है कि वह निर्देश है। शांतीदेवी झुठा प्यार जताकर सीता को गले लगा लेती है, और उसे पूजा के बहाने फार्म हाऊस चलने के लिए कहती है। वहां राकेश एक झोपड़ी में सीता को रस्सियों से बांधकर आग लगाकर भाग जाता है। सीता बचाव के लिए चिखती है, अमर आकर उसे जलने से बचाता है, और उसे उद्युक्त करके उसके अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाने के लिए तैयार करता है। सीता अपने पर किए गए अत्याचारों का बदला लेने के लिए तैयार हो जाती है।
अमर सीधी साधी सीता को कामिनी नाम से नये रूप में बदलता है, और सोसाइटी में पेश करता है। प्रकाश और राकेश कामिनी की ओर आकर्षित होतेहैं। कामिनी से मिलना चाहते हैं, अमर और कामिनी प्रकाश और राकेश को अपनी मोहजाल में फंसाना शुरु करते हैं। धीरे धीरे प्रकाश कामिनी का दिवाना हो जाता है, उठते बैठते, सोते जागते दिन-रात कामिनी के ख़्वाब देखता है, इतना ही नहीं बल्कि प्रकाश, राकेश, शांतीदेवी, शोभा सब मिलकर कामिनी देवी की चमचेगिरी करने लगते हैं। फिर एक मुकाम पर अमर कैसे उन्हें अपनी जाल में फांसता है और उनकी सारी प्रॉपर्टी पर कब्जा करके उन्हें भिखारी बनाकर इस बात का एहसास दिलाता है कि किसी भोली-भाली, सीधी-साधी औरत को जलील करना सबसे बड़ा पाप है, गुनाह है और अन्त में सारे सीता से माफी मांगकर उसे उसका हक्क देकर उसे अपनाते हैं।
ये हमारी इस कथा का सार है।
[from the official press booklet]